मेरे यौवन में मुझे बतलाया गया कि एक विशिष्ट शहर में प्रत्येक ईश्वरीय पुस्तकों के अनुसार जीवनयापन करता है ।
तथा मैंने कहा, “मैं उस नगर एवं उसकी धन्यता का पता करूँगा ।” परंतु वह शहर अत्यधिक दूर था । तब मैंने अपनी यात्रा के लिए अच्छी खासी तैयारी की । फिर चालीस दिनों के पश्चात् मुझे उस नगर का दर्शन हुआ, तथा इकतालीसवें दिन मैंने उस में प्रवेश किया ।
और ए आश्चर्य ! सभी निवासियों की केवल एक एक आँख थी तथा केवल एक एक हाथ । और मैं तो हैरान हो गया एवं स्वयं से कहने लगा, “क्या इतने धन्य नगर के लोगों की मात्र एक एक आँख तथा एक एक ही हाथ होना चाहिए?”
तब मैंने देखा कि वे भी हक्के बक्के हो गए थे, क्योंकि वे मेरे दो हाथों तथा मेरी दो आँखों पर अनियंत्रित विस्मयातिरेक थे । और जब वे आपस में बातें कर रहे थे तो मैंने उनसे पूछा, “क्या यह वास्तव में वही धन्य शहर है, जहाँ हर एक व्यक्ति ईश्वरीय पुस्तकों के अचूक अनुसार अपना जीवन गुज़ारते है?” और उन्होंने कहा, “हाँ, यह वही नगर है ।”
मैं ने संवाद जारी रखते हुए कहा, “परंतु आप सब पर यह क्या बीती है, आप की दाहिनी आँख तथा आपके दाहिने हाथ कहाँ हैं?”
और सभी लोग भावनाओं से डूब गए । अतःपरं उन्होंने कहा, “तुम आओ और देखो ।”
तब वह मुझे शहर के बीचों बीच स्थित देवालय तक ले गए । और मन्दिर के अंदर मैं ने हाथों तथा आँखों का अंबार देखा । सब मुरझाए हुए । तब मैं ने कहा, “अफसोस ! यह किस विजेता सेना ने तुम पर ऐसा अत्याचार किया है?”
तथा वे आपस में बड़बड़ाए । तथा उनमें से एक वृद्ध व्यक्ति उठकर सामने आए और कहे, “यह काम हमारा स्वयं का है । परमेश्वर ने हमें हमारे भीतर विराजमान दुष्टता पर विजेता बनाया है ।”
तथा वह मुझे एक ऊँची वेदी पर ले गया, और सभी लोग पीछे आए । अतःपरं उसने मुझे वेदी के ऊपर तराशा एक पाठ दिखाया और मैंने पढ़ा :
“अगर तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हें अप्रसन्न करे, उसे स्वयं बाहर निकाल दो तथा फेंक दो, क्योंकि यह तुम्हारे लिए लाभप्रद है कि तुम्हारा एक अंग नष्ट हो, न कि यह कि तुम्हारा पूरा शरीर नरक में फेंक दिया जाए । और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हारा उल्लंघन करे, उसे काट डालो एवं उसे अपने से दूर करो; क्योंकि यह तुम्हारे लिए लाभदायक है कि तुम्हारा एक अंग नष्ट हो, न कि यह कि तुम्हारा पूरा शरीर नरक में फेंक दिया जाए ।”
तब मैं समझ गया । और मैं ने घूमकर सभी लोगों की ओर देखा तथा ऊँचे स्वर से पूछा, “क्या आप लोगों के बीच कोई ऐसा पुरुष या महिला नहीं कि जिसके दो हाथ तथा दो आँखें हैं?”
तथा उन्होंने मुझे यह कह कर उत्तर दिया, “नहीं, कोई नहीं । कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय उनके, जो इतने कम उम्र है कि वे पवित्रग्रंथ पढ़ने तथा उसकी आज्ञायें समझने में असमर्थ हैं ।”
तथा जब हम मन्दिर से बाहर आ गए, तो मैं ने वह धन्य शहर तुरंत छोड़ दिया; क्योंकि मैं उतना कम उम्र का नहीं था, और मैं पवित्रग्रंथ पढ़ सकता था ।